दिल्ली जिला में एक उप आयुक्त होता है, जो मुख्य जिला अधिकारी भी होता है, जिसके पास राजस्व और पंजीकरण शक्तियाँ हैं। वह जिला बोर्ड और नगर पालिका का मुखिया होने के साथ, शहरी प्रशासन के मुखिया भी था।
स्वतंत्रता तक, दिल्ली में प्रशासनिक तौर पर एक मुख्य आयुक्त और कार्यकारी प्रमुख, जिसे उप आयुक्त रिपोर्टिंग करता है, होता है। वह तीन सहायक आयुक्त रखता है, जो जिम्मेदारियों जैसे कि राजस्व के मामलों का कार्य एवम् आपराधिक अपीलें, नगरपालिका एवम् लघु आपराधिक मामलें और नगर पालिका का प्रशासन, को साझा करते हैं।
आजादी के बाद, जिला प्रशासन की प्रकृति में कुछ बदलाव किया गया है, जिसमें नव निर्मित विभागों को शक्तियाँ हस्तांतरण की गयी हैं। उदाहरण के लिए, नगर पालिका एमसीडी के रूप में विकासित हुई, जिसमें डीसी की 1958 के बाद कोई भूमिका नहीं थी। विकास का काम विकास आयुक्त को, उद्योग का काम उद्योग निदेशालय को और परिवहन का काम परिवहन विभाग को स्थानांतरित किया गया।
तथापि, डीसी दिल्ली जिला प्रशासन का निरंतर मुखिया होने के साथ कानून एवम् व्यवस्था, उत्पाद शुल्क, हथियारों के मुद्दे एवम् विस्फोटक लाइसेंस और नागरिकता प्रमाणपत्र के अलावा राजस्व एवम् आपराधिक न्यायिक कार्य के लिए जिम्मेदार है। सत्तर के मध्य में, जिलाधीश कार्यालय इस प्रकार संगठित था -- वहाँ चार जिले प्रशासनिक थे - नया, सेंट्रल, उत्तर और दक्षिण। इनकी देखभाल तीन ऐडीएमों के द्वारा की जाती है, जिनमें विभिन्न अन्य शक्तियों और कार्यों जैसे कि कोष, उत्पाद शुल्क, मनोरंजन आदि में विभाजित किया गया। राजस्व और भूमि अधिग्रहण का काम क्रमशः ऐडीएम (राजस्व) और ऐडीएम (ला) द्वारा पर्यवेक्षित था। वहाँ 12 उप प्रभाग थे, जिनमें से प्रत्येक का प्रमुख एसडीएम होता था। ये उप प्रभाग बाद में कम होकर सात हो गये।